Friday, June 19, 2020

शहीद जसवंत सिंह रावत की जीवनी को पाठ्यक्रम में शामिल कराने की उठ रही है मांग:-@Narendra singh bisht WhatsApp +917579108513

  • उत्तराखंड को सैनिक भूमि केे नाम से जाना जाता है. उत्तराखंड अपने वीरता के लिए मशहूर है. उत्तराखंड के एक महान वीर शहीद जसवंत सिंह रावत जिन्होंनेे चीनी सैनिकोंं के छक्के छुडा दिए थे. अब लोग यह सवाल उठा रहे हैंं कि आखिर ऐसेेे वीर जवानों केेे बारे में पाठ्यक्रम में क्यों शामिल नहींं किया गया.
आख़िर उत्तराखंड सरकार ने हमें#जसवंत_सिंह_रावत  जैसे शहीदों के बारे में क्यूँ नहीं पढ़ाया ..
जो अकेले चीनी सेना से लड़ते रहे

जिन्होंने कहा था जब तक मैं ज़िन्दा हु अपने हिस्से की एक इंच ज़मीन भी चीन को नहीं दूँगा..
आख़िर क्यूँ

क्या ऐसी चीज़ें पाठ्यक्रम में नहीं होनी चाहिए ...?

जानिए कौन हैं शहीद जसवंत सिंह रावत
उत्तराखंड के ग्राम बुडयुं, पट्टी खाटली, ब्लॉक बीरोंखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल में जन्मे वीर जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था. बचपन से ही इनका सपना में सेना में भर्ती होने का था. मात्र 17 साल की उम्र में यह सेना में भर्ती होने गए थे, परंतु उम्र कम होने के लिए इन्हें रोक दिया गया. उम्र होने के बाद यहां सेना में भर्ती हो गए.

1962 युद्ध के महानायक
चीन ने 17 नवंबर 1962 को आना चल प्रदेश पर हमला किया उस समय अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती नहीं थी तत्पश्चात चीनी सैनिकों को रोकने के लिए गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वहां भेजा गया. इसी गढ़वाल राइफल के सैनिक थे जसवंत सिंह रावत.
चीन के साथ हुए युद्ध में भारतीय सेना के जवानों के पास प्राप्त हथियार और गोला बारूद ना होने से सेना के जवानों को वापस बुलाने का फैसला लिया गया. गढ़वाल राइफल के 3 जवान राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, लोकनायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं को छोड़कर बाकी बटालियन वापस आ गई.

अपनेे दोनों साथियों को भेज दिया वापस
वीर जसवंत सिंह ने अपने दोनों साथियों को वापस भेज दिया और खुद नूरानंग की पोस्ट पर चीनी सैनिकों को रोकने का फैसला लिया. अकेले लड़ते ही इन्होंने 72 घंटे सचिन सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था. अलग-अलग जगहों पर उन्होंने अपनी रायफल तैनात कर दी थी. जिस वजह से यहां लग रहा था कि वह अभी अकेले नहीं है.

वीर जसवंत सिंह की बनाई गई स्मारक
जिस जगह पर शहीद जसवंत सिंह रावत ने चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे वहां पर उनके नाम का एक मंदिर बनाया गया भारतीय सेना का जवान ड्यूटी शुरू करने से पहले उन्हें शीश झुकाता है.

हमारे पाठ्यक्रम में आखिर शामिल क्यों नहीं
यह बात भी सोचनीय है कि आखिर ऐसे वीरों की कहानी हमारे पाठ्यक्रम में क्यों नहीं है, जबकि हमारे आने वाले पीढ़ी के लिए यह एक प्रेरणा स्रोत है. सरकार को इस मामले में जल्द ही निर्णय लेना चाहिए.


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